
मुंबई, 6 जून 2025:
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार के सांस्कृतिक मामलों के मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया है कि वे मुंबई के ऐतिहासिक अगस्त क्रांति मैदान में बकरी ईद की नमाज़ अदा करने की अनुमति को लेकर दायर याचिका पर शीघ्र निर्णय लें। यह निर्देश न्यायमूर्ति नीला गोखले और न्यायमूर्ति मंजुशा देशपांडे की अवकाश पीठ ने दिया, जो याचिकाकर्ता उमर अब्दुल जब्बार गोपालानी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
क्या है मामला?
गोपालानी ने याचिका में गामदेवी पुलिस के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें संभावित कानून व्यवस्था और ट्रैफिक जाम का हवाला देते हुए अगस्त क्रांति मैदान में सामूहिक नमाज़ की अनुमति देने से इनकार किया गया था। याचिकाकर्ता का कहना है कि पिछले 50 वर्षों से इस मैदान में बिना किसी विवाद के नमाज़ होती आ रही है, और इस वर्ष भी अनुमति न देना अन्याय होगा।
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि अग्निशमन और ट्रैफिक विभागों ने अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) जारी कर दिए हैं। हालांकि, बीएमसी ने पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय से NOC लेने को कहा है और उसके बाद ही आवेदन पर विचार करने की बात कही।
सरकार की दलीलें
लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि संबंधित एजेंसियों ने केवल सशर्त स्वीकृति दी थी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पुलिस का निर्णय आंशिक रूप से 2024 में अनुमति न दिए जाने के अनुभवों पर आधारित था। हालांकि, याचिकाकर्ता का कहना है कि 2024 में इनकार का कोई वैध आधार नहीं दिया गया था और वह निर्णय 2025 के लिए मान्य नहीं हो सकता।
कानूनी पक्ष और कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने 2006 में पारित अपने आदेश का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि अगस्त क्रांति मैदान एक संरक्षित स्मारक है, और ऐसे मामलों में अंतिम निर्णय का अधिकार राज्य सरकार के सांस्कृतिक मामलों और सामाजिक न्याय विभाग के सचिव के पास है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अनुमति दी कि वे अपनी याचिका में संशोधन कर संबंधित विभाग को पक्षकार बनाएँ, ताकि निर्णय की प्रक्रिया उचित कानूनी ढांचे के तहत आगे बढ़ सके।
तत्काल निर्णय का निर्देश
कोर्ट ने संबंधित सचिव को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रतिनिधित्व पर शीघ्र और प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लिया जाए – अधिमानतः आज ही।
ध्यान देने योग्य कानूनी आधार
याचिका में महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 37(ए) का भी उल्लेख किया गया है, जो सार्वजनिक और धार्मिक आयोजनों के लिए वर्ष में 45 दिनों तक आरक्षित मैदानों के उपयोग की अनुमति प्रदान करता है, बशर्ते सरकार की निर्धारित शर्तें पूरी की जाएं।