यदि, प्रोत्साहन और मनोबल दिया जाए तो बेटियां क्या नहीं कर सकतीं। सातवीं तक लड़कियाँ की यह इशारा नज़र की जा रही है कि यह तो क्यों पराया धन है, इसे अधिकतर पढ़ा-लिखाया जाए। परिवार में वैज्ञानिकों को सर्वोत्तम पोषण, प्रोत्साहन कर्ता लाड का लोधी ने वहीं रहना शुरू कर दिया, जबकि लड़कियों को छोड़ दिया जा रहा था। निर्देश की बेड़ी सिर्फ लड़कियों के लिए ही थी।
लड़का पूरी तरह से स्वच्छंद थे। यह भारतीय समाज रचना का स्याह चेहरा था। लड़कियों की शिक्षा, उनके विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ने की क्षमता पर पुनर्विचार किया जा रहा है। समय के साथ सोच परिवर्तनशील लेकिन वह भी कहीं-कहीं। आज भी देश के जहाँ-तहाँ राज्य में रूढ़िवाद और आमूल-चूल तत्व हैं, जो बालक से विकास के अवसर निर्ममता से छीन लेते हैं। यह ध्यान ही नहीं है कि बेटी 2 कुलो का आकर्षण है। कितनी ही काबिल बेटियाँ अपने माता-पिता का सहारा साबित हुई हैं, जबकि उनका भाई पछतावा साबित हुआ है। 10वीं और 12वीं की परीक्षा का रिजल्ट देखा जाए तो दोनों ही इम्तहानों में लड़कियों ने बाजी मार ली है।
लड़कियों का पासिंग प्रतिशत 94.75% है जबकि लड़कों का 92.77% है। 12वीं में भी लड़कों की तुलना में लड़कियों की पासिंग परसेंटेज 6.40% ज्यादा है। इस बार 91 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां पास हुईं। लड़कियों में पढ़ाई के प्रति अभिरुचि, एकाग्रता के साथ ही उनकी हैंडराइटिंग भी बेहतर रहती है। वे अपनी ज़िम्मेदारी बेहतर समझती हैं। जो लड़का है वो मौजमस्ती में अपना टाइम बर्बाद कर देता है। इसके विपरीत लड़कियाँ घर के काम में माँ का हाथ बंटाने के साथ अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान देती हैं। उनके दिमाग वैज्ञानिकों से जरा भी कम नहीं होता।