तरह-तरह की टोपियों और पगड़ी से लेकर करीबी रिश्तेदार नेताओं ने राजनीति के क्षेत्र को भी फैशन शो बना दिया है। उनकी निश्चित धारणा है कि जिस राज्य में जाओ, वहां की टोपी, पगड़ी या पोशाक पहन लो तो इस फिल्मी पोशाक से जनता उसी तरह प्रभावित होगी जैसे किसी मजमा वाले बाजीगर से होती है। जैसा कि उन्होंने देश चरित्र भेष का मूलमंत्र अपना रखा है। पंजाब गए तो सरदारों वाली पगड़ी पहना ली, हिमाचल प्रदेश जाने पर वहां की रंगबिरंगी टोपी पहन ली। सेना के बीच गए तो फ़ौजी जनरल जैश ने कपड़े पहन लिए।
दक्षिण भारत जाने पर वेस्टी (लुंगी) के उदाहरणों में भी वह पीछे नहीं रहती। वे योजना बना रहे हैं कि जहां का पहरवा लगाएंगे वहां की जनता अपने कौतुक का इस्तेमाल करेगी और लोगों को सलाह देने का आधा काम करेगी तो वहां के चित्र और टोपी-पगड़ी की शुरुआत से ही होगी। इसके अलावा लोगों को उस समय भी याद है जब बंगाल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान इस महान नेता ने गुरुदेव रसेलनाथ टैगोर के समान लंबे समय तक काम किया था। तीर्थस्थान जाने पर वे पहुंचे साधक के समान तिलक या त्रिपुंड लगा लेते हैं। कहीं औषधीय औषधियां बनाई गई हैं, तो कहीं साष्टांग दंडवत करते हुए उनकी फोटो लोग नहीं देखते हैं। किसी भी नेता के लिए आज तक यह खतरा नहीं आया।
पुरानी जन कांग्रेस पहले गांधी टोपी का आविष्कार करती थी लेकिन अब वह टोपी को केवल अपने सेवादल के प्रतिबंध तक सीमित कर देते हैं। समाजवादी लाल टोपी के अलावा समाजवादी यादव को कुछ भी पसंद नहीं आता। टॉपियों के शौक़ीन नेताओं को निराश होना चाहिए कि बिना सोचे समझे कोई भी टोपी पहने, कभी-कभी आलोचना का शिकार भी बन जाता है। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज की टोपी अत्यंत सम्माननीय और विशिष्ट है जिसे ‘जिरेटॉप’ कहा जाता है। ऐसी टोपी सिर्फ महाराज ने कहा। उनके सबसे बड़े सरदार अपनी मराठा पगड़ी बनाते रहे।
किसी का साहसिक कार्य ‘जिरेटॉप’ की परिभाषा नहीं हुई। छत्रपति शिवाजी महाराज को महाराष्ट्र में ‘दैवत’ या ईश्वर के समान माना जाता है। महाराष्ट्र प्रेम जथने के जोश में नेता ने ‘जनता राजा’ का ‘जिरेटॉप पहना’ लिया। महाराष्ट्र के जिन नेताओं ने उन्हें ये जिता दिया, उन्होंने भी अपनी गलती के लिए माफ़ी मांग ली। मराठी मन फिर भी व्यथित है कि ऐसा क्यों हुआ?