हमारा देश जनसंख्या का दावा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आज़ादी के बाद 76 वर्षों में भी यदि करोड़ों देशवासी अपनी ज़रूरत का अनाज खरीद पाने में असमर्थ हैं तो इसके लिए स्पष्टीकरण कौन है? यह हमारे सिस्टम का विरोधाभास है कि एक ओर तो भारत को आने वाले कुछ ही वर्षों में दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनाने का सुनहला सपना दिखाया गया है, जबकि दूसरी ओर 80 करोड़ देशवासी मुफ्त बैठक वाले अनाज पर सहमति जताई गई है। यह स्थिति दीया अँधेरे की कहावत को चरितार्थ करती है। कोई भी अनैतिक, कमचोर और लाचार हो तो उसे गैर-जरूरी राशन देना समझ में आता है लेकिन जो लोग स्वस्थ और मेहनत करने में सक्षम हैं, उन्हें मुफ्त अनाज देना, उन्हें निकम्मा या अकर्मण्य बनाना है।
उन्हें होटलों या लैबरलों में सेरिखी लिस्टिंग काम के बदले अनाज दिया जाए तो उनकी उपयोगिता हो सकती है। जो व्यक्ति मुफ़्त की भीख या खैरात ले जाता है, उसका कमरा मर जाता है। वह स्वयं को अपनी ही नजरों में गिरा देती है। एक बार मुफ़्त में किसी वस्तु को पाने वाला यही चाहता है कि उसे मुफ़्त में विश्राम मिले।
बीजेपी-कांग्रेस में होड़
मुफ़्त राशन की सुविधा ऑनलाइन उपलब्ध है। भाजपा प्रति व्यक्ति 5 लॉटरी के दर से मुफ्त राशन दे रही है तो कांग्रेस ने जवाब दिया कि उसने डबल पेमेंट का वादा किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्ज खुनाडेगे ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मिलकर नेशनल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि 4 जून को केंद्र में भारत गठबंधन की सरकार बनेगी। एक ही दिन से गरीबों को हर महीने वर्तमान 5 किलो की जगह 10 किलो मुफ्त राशन दिया जाएगा। चुनाव के अगले 3 चरण कांग्रेस के लिए ये बड़ा दांव है।
दक्षिण से चलायी गयी दुकान
दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिल में दोनों द्रविड मेकर मास्टर्स और एआईए एमएडीएमके मुफ्त में उपहार की राजनीति इसी दशकों से करती आ रही हैं। फ्री कलर टीवी, अम्स कैंटीन जैसी ही सामान और मुफ्ती का वादा करके ये योजना सत्ता में आती रहती हैं। यह एक कस्टम सा बन गया है। जब इस तरह इंडिपेंडेंट का सौदा किया जाए तो क्या चुनाव और नेता रहेंगे? ऐसे ही बेतुके वादे शामिल हैं जिनमें सरकारी खजाना खाली होना शामिल है। इसकी चिंता न राजनीतिक आश्रम को रखती है न मुफ़्त उपहारों को अपना हक सुझाववाले को!
दिल्ली में भी यही हुआ
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली-पानी, मुफ्त शिक्षा, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, घर पर मुफ्त राशन, भिक्षुओं के नामांकन के वादे किए, जिसमें उन्होंने जन-जन को कदम-कदम पर बताया। इस रहस्य को बनाए रखा गया है कि धन स्थान से मुक्त आवेदन के लिए यहां आएं बात। यह ठीक है कि जिन गरीबों की योग्यता नहीं है या जो उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान नहीं कर सकते, उन्हें लोक सरकार का कर्तव्य नहीं माना जा सकता, लेकिन उन्हें नामांकित पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।
विभिन्न बिजली बिल माफ कर देने के वादे के साथ सत्ता में आते हैं, इससे दोगुना नुकसान होता है। पहले ये कि किसान खेती छोड़ रहे हैं कि बिल माफ हो जाएगा इसलिए वे उसे भरते ही नहीं। दूसरा यह कि जिन राज्यों में किसानों को मुफ्त बिजली दी जाती है वह स्विच ऑफ ही नहीं करते। कृषि पंपों से दिन-रात सींचना करते हैं जहां वहां का भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है। एक बार फ्री की आदत लगा दी गई तो फिर बिल वेशियल का फैसला नहीं लिया जा सकेगा। आदर्श निर्णय तो सरकार आलोकप्रिय हो, सत्ता खो सकती है। मुफ़्तखोरी की बीमारी कभी ख़त्म नहीं होती।