यह बीजेपी अध्यक्ष पतंजलि पार्टी का बड़बोलापन है या फिर स्टैटिक्स जो उन्होंने अचानक दुस्साहसी बयान दिया था कि पहले बीजेपी को आरएसएस की जरूरत नहीं थी लेकिन अब बीजेपी स्वयं सक्षम नहीं हो गई है! पार्टी अब बड़ी हो गई है और स्वयं को आप चलाती हैं। ऑर्केस्ट्रा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी के समय की बीजेपी छोटी पार्टी की सीमित पहुंच थी, तब उन्हें आरएसएस की जरूरत पड़ी थी। प्रश्न यह है कि क्या संघ को कम आदेन और भाजपा को बड़ी पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए नियुक्त किया गया था? क्या यही बात है प्रधानमंत्री मोदी और मैक्सिमम शाह दिखाएंगे? किस केंद्रीय जांच में शैतान के डॉक्टर पिशाच दलबदलुओं को साथ लेने से पार्टी बड़ी हो जाती है और उसे अपने अभिभावक संगठन की आवश्यकता नहीं रहती है? अपने पितृसत्ता संगठन से बगावत का बयान जैसा है कि 2025 में अपना शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है।
संघ कभी पकड़ नहीं छोड़ता
हालाँकि आरएसएस स्वयं एक सांस्कृतिक संगठन है लेकिन राजनीति में हस्तक्षेप के रूप में उसका अस्तित्व बना हुआ है। ऐसा कहा जा रहा है कि उनके स्वयंसेवक अपनी रुचि के अनुसार किसी भी पार्टी में शामिल होकर स्वतंत्र हैं, लेकिन संघ की शाखा में शामिल स्वयंसेवक पहले जनसंघ में और बाद में भाजपा में जा रहे हैं। अन्य व्युत्पत्तियों के प्रतिरूप उनका चिह्न कभी नहीं रहा। आरएसएस ने अपने सिद्धांत से लेकर विचारधारा वाले नेताओं को कभी नहीं बचाया। जब जनसंघ बना तो दा। रघुवीर और मौलीचंद्र शर्मा जैसे अध्यक्षों को आरएसएस ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में जब मधु लिमये और राजनारायण जैसे समाजवादियों ने अटलबिहारी और लालकृष्ण कैथोलिक जैसे नेताओं की ओर से गठबंधन का मौका उठाया तो इन दोनों नेताओं ने मंत्री पद से जनता ने मंत्री पद छोड़ दिया और आरएसएस से अपनी सम्बद्धता जारी रखी। संघ के प्रोत्साहन से 1980 में भाजपा का गठन हुआ। जब रेलवे के नेतृत्व में भव्य सरकार बनी थी तब भी संघ ने अपना बाज़ार बनाया था। उस समय विश्वनाथ के सहयोगियों की आलोचना करते हुए नानाजी देशमुख और दत्तोपंत ठेगड़ी जैसे संघ के नेताओं ने कड़ी चेतावनी दी थी। तब विनिवेश का फैसला टालना पड़ा था और विनिवेश मंत्री अरुण शौरी को पदच्युत कर दिया गया था।
ज्वालामुखी को महत्वपूर्ण बनाया गया था
लालकृष्ण ऑर्केस्ट्रा संघ के अत्यंत प्रिय पात्र थे जिन पर वह अटल से भी बहुत अधिक आश्वस्त थे। इसके बावजूद जब रॉकेट ने खुद को सिकुलर टॉक के जोश में कराची के व्यापारी पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की कब्र पर उनकी महिमा की थी तो आरएसएस ने उन्हें नजरों से गिरा दिया था। वह बिल्कुल अकेले और उपेक्षित होकर रह गईं। संघ के निर्देश दिए गए निर्देश में कहा गया कि मार्शल समर्थक नेता अरुण अंश, वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज, शिवराजसिंह चौहान चूं तक नहीं पाए गए।
एना को अनुभव हुआ
अन्ना हजारे ने जब जनलोकपाल बिल की मांग और समर्थन के विरोध में दिल्ली में आंदोलन किया तो संघ ने भारी विरोध किया। एना को लगा कि यह उनकी प्राथमिकता का कारण है। जब उन्होंने मुंबई में हड़ताल की तो संघ ने हाथ खींचा और लोग बहुत आराम से आ गए। संघ ने अन्ना को अपनी ताकत दिखायी। मित्र सिंह, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता बीजेपी में सफल नहीं हो पाए क्योंकि ये संघ के रेशम से नहीं थे। बीजेपी सिर्फ कंप्यूटर का स्क्रीन है जबकि RSSMashboard! संघ ही असली ताकत है जिसने जनसंघ, जनता पार्टी और फिर भाजपा को खड़ा किया। वह सहायता-समर्थन न दे तो बीजेपी कुछ नहीं कर सकती।