हाल ही में देश में विमानों के विस्तार में वृद्धि के समय एयरलाइंस कंपनियों की बाढ़ सी आ गई थी। अस्तित्व बचाने के चक्कर में कम से कम ज्यादा का खेल खेला गया। इस खेल का लाभ लोगों ने खूब उठाया। इसके बाद लोगों को विमान में सफर करने की आदत हो गई। इसके बाद हालात में बदलाव आया। धीरे-धीरे कंपनियां बंद होती चली गईं और अब कुछ ही खिलाड़ी मैदान में रह गए। बदलती हुई परिस्थिति में इन कंपनियों ने यात्रियों का शोषण शुरू कर दिया। जैसे ही सीजन शुरू होता है, कंपनियां उधार दे देती हैं। जिस रूट का किराया 4-5 हजार रुपये औसत रहता है, उस रास्ते के लिए 20 से 25 हजार रुपये की राशन होने लगती है।
यह सभी देख भी रहे हैं लेकिन हवाई सेवाओं को लाभ और किराये पर नियंत्रण सागर मंत्रालय के लिए बड़ी चुनौती बना दिया गया है। प्रयास विफल हो रहे हैं। डीजीसीए तरह-तरह की लॉन्चिंग जारी है लेकिन एयरलाइंस ‘फ्लोटिंग’ रेट का कर ही दे रही है। डीजेसिया ऊपरी सीमा तय कर रही है, लेकिन निर्माता इसे भी तोड़ कर ले जा रहे हैं। एयरलाइंस की आगे की सरकार और सरकारी तंत्र की नैतिकता दिखाई दे रही है। निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों में हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में भारी उछाल देखने को मिला है।
इसका लाभ कई क्षेत्रों को मिला है। पर्यटन बढ़ रहे हैं। यह लेखन कार्य तेजी से चल रहा है। इसी का लाभ विमान सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां उठा रही हैं। लोगों की मजबूरी का लाभ बढ़ता खुद की झोलि भर रही हैं। जानकारों का कहना है कि जब तक देश में एयरलाइंस का विस्तार नहीं होता और यात्रियों की संख्या में वृद्धि नहीं होती, तब तक यात्रियों के साथ इसी प्रकार का खेल चलता रहेगा। इसे रोकने में सरकारी प्रयास भी असफल ही होते रहेंगे।