नागपुर. वंचित समूह या कमजोर वर्ग का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, इसके लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून लाया गया. जिसमें एक किलोमीटर के दायरे में स्थित किसी भी स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया. 25 प्रतिशत प्रवेश के रखे गए नियमों में अब सरकार की ओर से महाराष्ट्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 के नियम 4 के उप-नियम (5) के बाद प्रावधान जोड़ा गया है, जिसमें स्थानीय अधिकारियों को राइडर प्रदान किया जाता है. जिसे चुनौती देते हुए वैभव काम्बले और अन्य की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सहायक सरकारी वकील ने कहा कि शपथपत्र तो तैयार है लेकिन उसे दायर करने के लिए 2 सप्ताह का समय लगेगा. जिसके बाद हाई कोर्ट ने शपथपत्र दायर करने के लिए अंतिम मौका प्रदान कर सुनवाई स्थगित कर दी. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधि. जायना कोठारी और अधि. दीपक चटप, अधि. आर.एस. भोयर और अधि पायल गायकवाड़ ने पैरवी की.
याचिकाकर्ताओं की स्कूलों को अनुदान नहीं
महाराष्ट्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (कक्षा I या प्री-स्कूल में न्यूनतम 25%बच्चों के प्रवेश का तरीका) के तहत वंचित समूह और कमजोर वर्ग के 25 प्रतिशत प्रवेश के उद्देश्य से निजी गैरसहायता प्राप्त स्कूल की पहचान करना होता है. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि स्कूल शब्द को बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 2 के खंड (एन) के तहत परिभाषित किया गया है. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि गैर सहायता प्राप्त स्कूल को अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उपयुक्त सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से किसी भी प्रकार की सहायता या अनुदान नहीं मिल रहा है.
ऐसी ही याचिका पर अंतरिम आदेश
याचिकाकर्ता की ओर से संशोधन पर अंतरिम रोक लगाने के आदेश देने का अनुरोध किया गया. अदालत को बताया गया कि इसी तरह की एक जनहित याचिका पर अंतरिम आदेश जारी किए जा चुके हैं. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि जब तक गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 2 उपखंड के (iv) के खंड (एन) के तहत परिभाषित स्कूल की परिभाषा के दायरे से बाहर नहीं किया जाता है, तब तक नए प्रावधानों को प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट की ओर से शिक्षा विभाग के सचिव, उपसचिव और शिक्षा आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा गया था. अब अंतिम मौका प्रदान किया गया है.