भोपाल:
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की मौतों में चिंताजनक वृद्धि पर एनडीटीवी की रिपोर्ट के बाद कार्रवाई शुरू करते हुए मध्य प्रदेश वन मुख्यालय ने रिजर्व के उप निदेशक और शहडोल वन प्रभाग के अधिकारियों को नोटिस जारी किया है।
1 अगस्त को एक रिपोर्ट मेंएनडीटीवी ने पिछले तीन वर्षों में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 34 बाघों और शहडोल वन क्षेत्र में नौ बाघों की मौत पर प्रकाश डाला था, जिसके बाद वन्यजीव प्रेमियों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी।
वन मंत्री रामनिवास रावत ने गुरुवार को कहा, “यह मामला हमारे संज्ञान में आया है और कल एक केंद्रीय जांच दल बांधवगढ़ पहुंचा था। केंद्रीय दल ने पूरा दिन वहां रहकर पूरी जानकारी जुटाई और रिपोर्ट तैयार की। मैं एनडीटीवी की टीम को इस मामले को उजागर करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। एनडीटीवी ने वन्यजीवों और वन क्षेत्रों की बेहतरी के लिए जिम्मेदारी से काम किया है और हमें उम्मीद है कि वे भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे।”
एनडीटीवी की जांच से पता चला है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में न केवल 34 बाघों की मौत हुई, बल्कि बाघों के बीच झगड़े को कारण बताकर इन मौतों को छिपाने की कोशिश भी की गई। मार्च में प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने इन मौतों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।
रिपोर्ट, जिसकी एक प्रति एनडीटीवी के पास है, में निम्नलिखित खामियां उजागर हुई हैं:
- सभी मामलों में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं कराई गई।
- अधिकांश मामलों में बाघों की मौत के लिए प्रारंभिक अपराध रिपोर्ट (पीओआर) दर्ज नहीं की गई।
- पोस्टमार्टम के लिए निर्धारित पशुचिकित्सक अनुपस्थित थे तथा अधिकांश मापदंडों का पालन नहीं किया गया था।
- अपराध स्थलों की सुरक्षा के लिए प्रयास अपर्याप्त थे, तथा कुत्तों के दस्ते या मेटल डिटेक्टरों का उपयोग नहीं किया गया था।
- नमूना संग्रहण और सीलिंग का कार्य ठीक से नहीं किया गया, जिससे अदालती मामलों के दौरान अभिरक्षा की श्रृंखला प्रभावित हुई।
- केस डायरियाँ या दस्तावेज प्रायः तैयार नहीं किये जाते थे।
- बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन रेंज के अधिकारियों द्वारा कई मामलों में अंतिम एनटीसीए रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई।
- बाघों की मृत्यु के कई मामलों को बिना गहन जांच के सतही तौर पर आपसी लड़ाई के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया।
- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में अक्सर संबंधित पशु चिकित्सा अधिकारियों के हस्ताक्षर नहीं होते थे और कुछ मामलों में तो कोई वन्यजीव चिकित्सा अधिकारी भी मौजूद नहीं था।
मध्य प्रदेश को ‘बाघ राज्य’ के रूप में जाना जाता है और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 1,000 से अधिक कर्मचारी और अधिकारी तैनात हैं, जिसके कारण कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि आखिर बाघों की मौतें क्यों हो रही हैं।
वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने भी “नेतृत्व संकट” की ओर इशारा किया।
श्री दुबे ने कहा, “बांधवगढ़ में स्थायी निदेशक की अनुपस्थिति के बारे में एनडीटीवी की रिपोर्ट में उठाया गया महत्वपूर्ण बिंदु भोपाल के लिए भी सही है। यहां लंबे समय से पूर्णकालिक मुख्य वन्यजीव वार्डन या पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) वार्डन की नियुक्ति नहीं हुई है। यहां नेतृत्व का संकट है और इस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। बांधवगढ़ में शिकारियों से मिलीभगत करने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।”
सूत्रों ने संकेत दिया कि इस रिपोर्ट से वन विभाग में काफी हलचल मच गई है और कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर भी जल्द ही गाज गिर सकती है।