नई दिल्ली:
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुल 31,772 करोड़ रुपये के अंतरिक्ष मिशनों को मंजूरी दी है, जिससे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए लगभग 2040 तक का रोडमैप तैयार हो गया है।
चंद्रयान-4 मिशन; शुक्र ग्रह के लिए मिशन; तथा भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को शामिल करने के लिए उन्नत गगनयान मिशन; तथा नए रॉकेट सूर्य के विकास को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई है।
ये स्वीकृतियां नई सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिनों के भीतर प्राप्त हुई हैं।
एनडीटीवी से बात करते हुए इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने कहा, “भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष विजन और रोडमैप को अब ऊंची उड़ान भरने के लिए पंख मिल गए हैं।”
इन चार शानदार स्वीकृतियों ने इसरो को भारत को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए तैयार कर दिया है। भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभों का लाभ आम आदमी तक पहुंचाने में पीछे नहीं रह सकता, क्योंकि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी हर भारतीय के जीवन को छूती है। श्री सोमनाथ ने कहा, “इसरो में हम यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र या विकसित भारत बनाने का आशाजनक दृष्टिकोण विफल न हो।”
सरकार ने चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद पृथ्वी पर वापस आने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना है, साथ ही चंद्रमा के नमूने एकत्र करना और पृथ्वी पर उनका विश्लेषण करना है। यह चंद्रयान-4 मिशन अंततः चंद्रमा पर भारतीय लैंडिंग (वर्ष 2040 तक नियोजित) और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लौटने के लिए आधारभूत प्रौद्योगिकियों और क्षमताओं को प्राप्त करेगा।
डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्र नमूना संग्रह और विश्लेषण को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रमुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया जाएगा। इस बहु-चरणीय मिशन के लिए कुल 2,104 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जो 36 महीनों में पूरा होगा।
पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह शुक्र का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला मिशन, 2013 में मंगल ग्रह के अत्यंत सफल प्रथम मिशन के बाद आया है।
इसरो अब वीनस ऑर्बिटर मिशन (वीओएम) को तेजी से विकसित करेगा जो चंद्रमा और मंगल से परे शुक्र की खोज और अध्ययन के सरकार के दृष्टिकोण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। शुक्र, पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है और माना जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वी जैसी ही परिस्थितियों में हुआ था, यह समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है कि ग्रहों का वातावरण किस तरह से बहुत अलग तरीके से विकसित हो सकता है।
अंतरिक्ष विभाग द्वारा पूरा किया गया ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन’, शुक्र ग्रह की कक्षा में एक वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान को स्थापित करने के लिए परिकल्पित है, ताकि शुक्र की सतह और उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव की बेहतर समझ प्राप्त की जा सके।
शुक्र ग्रह के परिवर्तन के अंतर्निहित कारणों का अध्ययन, जिसके बारे में माना जाता है कि यह कभी रहने योग्य था और पृथ्वी से काफी मिलता-जुलता था, शुक्र और पृथ्वी दोनों ही बहन ग्रहों के विकास को समझने में एक अमूल्य सहायता होगी। इस मिशन के लिए 1,236 करोड़ रुपये की राशि मार्च 2028 में लॉन्च की जानी है।
पृथ्वी की निचली कक्षा को न भूलते हुए, कैबिनेट ने गगनयान कार्यक्रम के दायरे को बढ़ाते हुए ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ की पहली इकाई के निर्माण को मंजूरी दी। कैबिनेट द्वारा भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस-1) के पहले मॉड्यूल के विकास और बीएएस के निर्माण और संचालन के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रदर्शन और सत्यापन करने के लिए मिशन शुरू करने को मंजूरी दी गई है।
गगनयान कार्यक्रम के दायरे और वित्त पोषण को संशोधित करना ताकि बीएएस और पूर्ववर्ती मिशनों के लिए नए विकास और चल रहे गगनयान कार्यक्रम को पूरा करने के लिए अतिरिक्त आवश्यकताओं को शामिल किया जा सके।
गगनयान कार्यक्रम में संशोधन करके बीएएस के लिए विकास और पूर्ववर्ती मिशनों के दायरे को शामिल किया जाएगा, तथा चल रहे गगनयान कार्यक्रम के विकास के लिए एक अतिरिक्त मानवरहित मिशन और अतिरिक्त हार्डवेयर की आवश्यकता को भी ध्यान में रखा जाएगा।
अब प्रौद्योगिकी विकास और प्रदर्शन का मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम आठ मिशनों के माध्यम से दिसंबर 2028 तक BAS-1 की पहली इकाई को लॉन्च करके पूरा किया जाएगा।
गगनयान और बीएएस-1 मिशन के लिए कुल 20,193 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं, जिसका लक्ष्य दिसंबर 2029 है।
इनमें से कुछ महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्रक्षेपण यान मार्क-3 (एलएमवी-3) जैसे मध्यम-लिफ्ट लांचरों की क्षमताओं के साथ प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसलिए कैबिनेट ने अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) के विकास को मंजूरी दी, जो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और संचालन तथा 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय चालक दल की लैंडिंग की क्षमता विकसित करने की सरकार की दृष्टि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
एनजीएलवी में वर्तमान पेलोड क्षमता तीन गुना होगी और इसकी लागत एलवीएम3 की तुलना में 1.5 गुना होगी। इसके अलावा इसमें दोबारा इस्तेमाल की सुविधा भी होगी, जिससे अंतरिक्ष तक कम लागत में पहुंच और मॉड्यूलर ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम संभव होगा। इसरो ने एनजीएलवी का नाम ‘सूर्य’ रखा है। सूर्य के विकास के लिए 8,239 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसे 96 महीनों में पूरा किया जाएगा।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लक्ष्यों के लिए उच्च पेलोड क्षमता और पुन: प्रयोज्यता वाले मानव-रेटेड लॉन्च वाहनों की एक नई पीढ़ी की आवश्यकता है। इसलिए, अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल (एनजीएलवी) का विकास किया जा रहा है, जिसे पृथ्वी की निचली कक्षा में 30 टन की अधिकतम पेलोड क्षमता के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें पुन: प्रयोज्य पहला चरण भी है।
वर्तमान में, भारत ने वर्तमान में प्रचालनरत प्रक्षेपण वाहनों के माध्यम से 10 टन तक के उपग्रहों को निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) में तथा 4 टन तक के उपग्रहों को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में प्रक्षेपित करने के लिए अंतरिक्ष परिवहन प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है।