
फ़िरोज़ गांधी: एक भुला दिया गया सच्चा जननायक
आज फ़िरोज़ गांधी की पुण्यतिथि है। अक्सर उन्हें सिर्फ़ “नेहरू के दामाद, इंदिरा गांधी के पति, राजीव गांधी के पिता और राहुल-वरुण गांधी के दादा” के रूप में याद किया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि फ़िरोज़ गांधी अपने आप में एक साहसी नेता, सच्चे जनप्रतिनिधि और भारत के पहले बड़े व्हिसलब्लोअर थे।
झूठ और अफ़वाहें
दशकों तक उनके बारे में यह अफ़वाह फैलाई गई कि वे “फ़िरोज़ खान” थे और मुसलमान थे। कहा गया कि उन्हें “गांधी” सरनेम महात्मा गांधी ने दिया। सच्चाई यह है कि फ़िरोज़ गांधी पारसी थे—एक ऐसा समुदाय जिसने भारत को उद्योग, सेना, विज्ञान और कला हर क्षेत्र में अनमोल योगदान दिया है।
पारसी कौन हैं?
पारसी ज़रथुष्ट्र धर्म के अनुयायी हैं, जो 10वीं शताब्दी में फारस से भारत आए।
उन्होंने गुजरात में शरण ली और भारत की संस्कृति में घुल-मिल गए।
पारसी सरनेम अक्सर पेशे से जुड़े होते हैं: बाटलीवाला, स्क्रूवाला, गादीवाला, डॉक्टर, मर्चेंट, गांधी (गंध/परफ्यूम बेचने वाला)।
पारसी धर्म में कोई धर्मांतरण नहीं होता, इसमें जन्म लेना ज़रूरी है।
आज पूरी दुनिया में मुश्किल से 1 लाख पारसी हैं, जिनमें से लगभग 70,000 भारत में रहते हैं। योगदान : व्यापार में: जमशेदजी टाटा, गोदरेज, नेविल वाडिया, साइरस मिस्त्री।
स्वतंत्रता संग्राम में: दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, मैडम भिकाजी कामा।
सेना में: जनरल सैम मानेकशॉ।
विज्ञान में: होमी भाभा।
कला-सिनेमा में: सोहराब मोदी, बोमन इरानी, फ्रेडी मर्क्युरी।
फ़िरोज़ गांधी का जीवन जन्म: 12 सितम्बर 1912, मुंबई
माता-पिता: जहांगीर गांधी और रतिमाई गांधी (पारसी दंपति) युवावस्था में इलाहाबाद में अपनी मौसी के पास रहते हुए आज़ादी के आंदोलन से जुड़े। कमला नेहरू की तबीयत बिगड़ने पर मदद करते हुए वे नेहरू परिवार के करीब आए। 1942 में इंदिरा नेहरू से वैदिक रीति से विवाह किया।दो बेटे हुए—राजीव और संजय।
संसद का शेर फ़िरोज़ गांधी का असली परिचय उनकी निर्भीकता है। सत्ता पक्ष के सांसद होकर भी उन्होंने सरकार और उद्योगपतियों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया।
मुंदरा कांड: एलआईसी से डूबती कंपनियों के शेयर खरीदने का मामला उजागर किया। नतीजा—वित्त मंत्री कृष्णामचारी को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
डालमिया-जैन घोटाला, बिरला-गोएंका मामले भी संसद में उठाए।
आरोपों से बचने के लिए उन्होंने टाटा कंपनी की डील का मामला भी उजागर किया।
उनकी ईमानदारी और साहस ने उन्हें जनता का असली नेता बना दिया।
1952: रायबरेली से सांसद चुने गए। 1960: सिर्फ़ 48 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से निधन।अंतिम संस्कार इलाहाबाद (प्रयागराज) के पारसी कब्रिस्तान में हुआ। उनकी लोकप्रियता देखकर नेहरू ने स्वीकार किया—“मुझे अंदाज़ा ही नहीं था कि फ़िरोज़ इतना लोकप्रिय है।”
असली विरासत फ़िरोज़ गांधी सिर्फ़ “नेहरू परिवार के सदस्य” नहीं थे। वे स्वतंत्र भारत की संसद में जनता की आवाज़ थे।
उन्होंने खुद कहा था— “जब इस तरह के भयंकर झूठ सामने आएँ तो चुप रहना अपराध है।”
फ़िरोज़ गांधी की असली पहचान को छुपाने और उन्हें “खान” बताने की कोशिश दरअसल पूरे पारसी समुदाय और उनके योगदान को अपमानित करने की रणनीति रही है।
सच यह है कि— फ़िरोज़ गांधी ईमानदारी, साहस और राष्ट्रनिष्ठा के प्रतीक थे। उन्होंने सत्ता के खिलाफ़ खड़े होकर जनता का पक्ष लिया। उनकी विरासत भारत की लोकतांत्रिक आत्मा को मज़बूत करती है।
उनकी पुण्यतिथि पर यही संदेश है—। 👉 झूठ चाहे जितना फैलाया जाए, लेकिन सच बोलना और सच के लिए खड़े रहना ही फ़िरोज़ गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि है।




