महाराष्ट्रहोम

मोबाइल ऐप से गूंजेगी अज़ान

अज़ान पर रोक के बीच ‘लाइव मस्जिद’ बना उम्मीद की आवाज़, मोबाइल ऐप से गूंजेगी अज़ान

मुंबई/पुणे, 1 जून 2025:ध्वनि प्रदूषण को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद महाराष्ट्र में मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को लेकर सख्ती बढ़ गई है। शोर नियंत्रण नियमों का हवाला देते हुए कुछ मस्जिदों पर कार्रवाई हो रही है, जिससे मुस्लिम समुदाय में नाराज़गी है। फेडरेशन ऑफ मस्जिद्स ने आरोप लगाया है कि कुछ राजनेता शोर के नियमों की आड़ में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं और खास तौर पर मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं।

हालांकि मस्जिद ट्रस्टियों ने स्पष्ट किया है कि वे अदालत के आदेशों का पूरी तरह पालन करेंगे। उनका कहना है कि अज़ान कोई शोर नहीं, बल्कि आस्था की पुकार है, जिसे समुदाय की धार्मिक भावना से जोड़ा जाता है। समाजवादी पार्टी के नेता अबू असीम आज़मी ने कहा कि “स्थानीय हिंदुओं को मस्जिदों से होने वाली अज़ान से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कुछ राजनेता इस मामले को अनावश्यक तूल दे रहे हैं।”

इस बीच, माहिम की बिस्मिल्लाह मस्जिद ने एक अनोखी पहल करते हुए ‘लाइव मस्जिद’ मोबाइल ऐप का उपयोग शुरू किया है। यह ऐप अज़ान को सीधे प्रसारित करता है, जिससे लोग – खासकर महिलाएं और बुजुर्ग – घर बैठे ही अज़ान सुन सकें। मस्जिद ट्रस्टी हाजी मोइन ने कहा, “पहले के ऐप रिकॉर्ड की गई अज़ान चलाते थे, लेकिन यह लाइव ऐप वास्तविक अनुभव देता है। यह ऐप हमारी धार्मिक भावना को सुरक्षित रखते हुए कानूनी दायरे में रहने का एक सुंदर तरीका है।”

पुणे में भाजपा सांसद मेधा कुलकर्णी पर एक मस्जिद परिसर में घुसकर अज़ान रोकने की कोशिश करने का आरोप भी सामने आया है। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय स्पष्ट करता है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। दिन के समय 55 डेसिबल और रात को 45 डेसिबल की सीमा तय है, जबकि लाउडस्पीकर की आवाज़ इससे कहीं अधिक हो सकती है। हालांकि, यह नियम सभी धर्मों और पूजा स्थलों पर समान रूप से लागू होता है।

धार्मिक आस्था और कानूनी दायित्व के बीच संतुलन खोजने की यह कोशिश इस बात का प्रमाण है कि तकनीक के माध्यम से आस्था के स्वर को सम्मानजनक और संवेदनशील ढंग से आगे बढ़ाया जा सकता है। ‘लाइव मस्जिद’ ऐप की यह पहल भविष्य में अन्य धार्मिक समुदायों के लिए भी एक उदाहरण बन सकती है।

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