
मुंबई : हाई कोर्ट ने निचली अदालत का बेल आदेश रद्द किया, गैंगरेप आरोपी को 2 दिन में सरेंडर करने का निर्देश
मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के निजी अंगों पर चोट का निशान न होना, गैंगरेप केस में आरोपी को जमानत देने का आधार नहीं हो सकता। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी की शादी तय होना भी जमानत देने का कोई वैधानिक कारण नहीं है।
यह मामला डीएन नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज गैंगरेप केस से जुड़ा है। दिंडोशी सेशन कोर्ट ने आरोपी को इस आधार पर जमानत दी थी कि उसकी शादी तय हो चुकी है। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी। अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस नीला गोखले ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपी को दो दिन के भीतर जांच अधिकारी के सामने सरेंडर करने का निर्देश दिया है।आरोपी को ढाई महीने में मिल गई थी बेल आरोपी को 9 दिसंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था। मात्र ढाई महीने बाद, फरवरी 2025 में, सेशन कोर्ट ने उसकी मार्च 2025 में तय हुई शादी का हवाला देते हुए बेल दे दी थी। जस्टिस गोखले ने इस आधार को “परेशान करने वाला” बताते हुए कहा कि निचली अदालत अपराध की गंभीरता पर विचार करने में विफल रही है।
पीड़िता को नशीला पेय पिलाकर गैंगरेप। हाई कोर्ट ने केस के तथ्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि पीड़िता आरोपी के फ्लैट पर गई थी, जहां उसे नशीला पेय पिलाया गया। इसके बाद कमरे में तीन आरोपियों ने उसके साथ बेरहमी से सामूहिक दुष्कर्म किया।
मेडिकल रिपोर्ट और सबूतों की अनदेखी
हाई कोर्ट ने सुनवाई में पाया कि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में सिर पर चोट, शरीर पर खरोंच और अन्य चोटों के स्पष्ट निशान दर्ज हैं। इसके बावजूद सेशन कोर्ट ने इन्हें नजरअंदाज किया। घटना स्थल से शराब की बोतल, सिगरेट के टुकड़े और महिला के अंडरगारमेंट्स भी बरामद किए गए थे। “निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज किया”। जस्टिस गोखले ने टिप्पणी की कि आरोपी का कथित कृत्य जघन्य है और परिस्थितियों की समग्रता को देखते हुए यह साफ है कि निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता पर पर्याप्त विचार नहीं किया। इसलिए आरोपी को दी गई जमानत रद्द की जाती है और उसे सरेंडर करना होगा।




