हाई कोर्ट ने जताई चिंता

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न: हाई कोर्ट ने जताई चिंता, कहा – कानून सख्त, पर मानसिकता में बदलाव नहीं
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि भारत में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कड़े कानून और सख्त प्रावधान मौजूद हैं, इसके बावजूद महिलाएं अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस नहीं कर पातीं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पुरुषों की मानसिकता में अभी तक ठोस बदलाव नहीं आया है।
अदालत की टिप्पणी हाई कोर्ट ने कहा कि जब भी पावर डायनेमिक्स यानी पद और सत्ता की ताकत शामिल होती है, तब महिलाओं को और ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वरिष्ठ अधिकारी या उच्च पद पर बैठे लोग अक्सर अपने अधिकार और पद का दुरुपयोग करते हैं। वहीं, शिकायत दर्ज कराने वाली महिला को कई बार प्रताड़ना, नौकरी खोने या बदनामी का डर सताता है।
सिर्फ कानून काफी नहीं अदालत ने स्पष्ट किया कि सिर्फ कानून बनाना पर्याप्त नहीं है। कानून तब प्रभावी होगा जब समाज में वास्तविक सोच बदलेगी और महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार अपनाया जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक पुरुष यह नहीं समझेंगे कि महिला उनके बराबर है और उसे सुरक्षित वातावरण का अधिकार है, तब तक ऐसे मामले सामने आते रहेंगे।
शिकायत दर्ज कराने में बाधाएं हाई कोर्ट ने यह भी माना कि कई महिलाएं कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराने से हिचकती हैं। इसके पीछे कई कारण होते हैं – नौकरी जाने का डर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा प्रतिशोध का खतरा सामाजिक बदनामी का डर लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया अदालत ने कहा कि यह स्थिति उत्पीड़न करने वालों के लिए एक तरह की “ढाल” बन जाती है और वे बच निकलते हैं। सख्त निगरानी और जागरूकता जरूरी हाई कोर्ट ने अपने अवलोकन में कहा कि नियोक्ताओं और संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करें। इसके लिए आंतरिक शिकायत समितियों (Internal Complaints Committee – ICC) को मजबूती से काम करना होगा और महिलाओं को भरोसा दिलाना होगा कि उनकी शिकायत पर तुरंत और निष्पक्ष कार्रवाई होगी।
समाज को संदेश अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि मानसिकता में बदलाव सबसे बड़ी चुनौती है। जब तक पुरुष यह नहीं मानेंगे कि महिला को भी उतनी ही गरिमा और अधिकार प्राप्त हैं जितने उन्हें, तब तक कड़े कानून भी सीमित असर ही डाल पाएंगे।
👉 दिल्ली हाई कोर्ट की यह टिप्पणी केवल कानूनी पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए चेतावनी और सुधार का संदेश है। अदालत ने साफ किया कि महिलाओं के लिए सुरक्षित और समान अवसर वाला कार्यस्थल तैयार करना सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है।




