
पवई झील से 10 दिनों में निकाली गई 1,450 मीट्रिक टन जलकुंभी
23 मई से 1 जून 2025 तक 5 हार्वेस्टर मशीनों द्वारा निरंतर कार्यवाही
बृहन्मुंबई महानगरपालिका द्वारा पवई झील और उसके आसपास के प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित एवं पुनर्जीवित करने के लिए शुरू किए गए विशेष अभियान के तहत झील से जलकुंभी और अन्य तैरती वनस्पतियों को हटाने का कार्य 23 मई 2025 से तीव्र गति से शुरू किया गया। इस प्रयास का सकारात्मक परिणाम यह रहा कि मात्र दस दिनों में, यानी 23 मई से 1 जून 2025 के दौरान, कुल 1,450 मीट्रिक टन जलकुंभी हटाई गई। इस प्रक्रिया के दौरान प्राकृतिक तत्त्वों की रक्षा और संवर्धन का विशेष ध्यान भी रखा गया।
पवई झील को प्रदूषण से मुक्त कर इसके प्राकृतिक स्वरूप को बहाल करने हेतु मनपा प्रशासन विभिन्न उपाय योजनाएं कर रहा है। विशेष रूप से जलकुंभी को हटाने के लिए 5 संयंत्र और अतिरिक्त मानव संसाधन तैनात किए गए हैं, जिससे यह कार्य तीव्र गति से चल रहा है।
पवई झील का निर्माण वर्ष 1891 में हुआ था, और इसका जलक्षेत्र लगभग 223 हेक्टेयर तथा परिधि करीब 6.6 किलोमीटर है। झील का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 600 हेक्टेयर में फैला हुआ है, और इसकी जलधारण क्षमता करीब 5,455 मिलियन लीटर है। पवई झील का पानी पीने योग्य नहीं है और इसका उपयोग अन्य कार्यों के लिए किया जाता है। क्षेत्र में तेजी से हुए नगरीकरण और झील में गिरते गंदे पानी के कारण जलकुंभी और अवांछनीय वनस्पतियों की वृद्धि हो रही है।
जलकुंभी की अत्यधिक वृद्धि से पानी की सतह ढक जाती है, जिससे जल की गुणवत्ता और जैवविविधता प्रभावित होती है। सूर्यप्रकाश के प्रवेश में बाधा आती है, जिससे झील में मछलियों के भोजन के रूप में उपयोगी वनस्पतियों की वृद्धि रुक जाती है और संपूर्ण खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। इन कारणों को ध्यान में रखते हुए, मनपा द्वारा जलकुंभी हटाने और उसे मुंबई के बाहर निष्पादित करने की कार्यवाही शुरू की गई है।
गत छह महीनों में 2 संयंत्रों द्वारा लगभग 25,000 मीट्रिक टन जलकुंभी हटाई गई है। हालांकि जलकुंभी की वृद्धि की दर अत्यधिक तेज है, जिससे इसे हटाने की तुलना में कहीं अधिक मात्रा में यह फिर से फैल रही है। पवई झील में गिरते सीवेज के कारण जलकुंभी को अनुकूल वातावरण मिलता है। इसे रोकने के लिए सीवेज लाइनों को अन्यत्र मोड़ना ही स्थायी उपाय है। जब तक यह कार्य पूर्ण नहीं होता, तब तक जलकुंभी हटाने की गति बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।
इसके अंतर्गत अब 5 हार्वेस्टर संयंत्रों के माध्यम से अधिक प्रभावी रूप से कार्य किया जा रहा है। हार्वेस्टर मशीनें, पंटून माउंटेड पोकलेन, सामान्य पोकलेन और डंपर आदि यंत्रों के माध्यम से यह कार्य तेजी से जारी है। इसमें दो शिफ्टों में अतिरिक्त मानवबल भी लगाया गया है। मॉनसून के बाद 6 संयंत्र तैनात किए जाएंगे। हटाई गई जलकुंभी को मुंबई महानगर क्षेत्र के बाहर निपटाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में जैव विविधता को कोई नुकसान न हो, इसके लिए ‘बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोसायटी’ के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में कार्य किया जा रहा है।
इस बीच, पवई झील में गिरते गंदे पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए मनपा के मलनिस्सारण प्रकल्प विभाग द्वारा दो निविदाएं निकाली गई हैं— जिनमें मलजल लाइन बिछाना और 8 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) क्षमता का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) स्थापित करना शामिल है। वर्तमान में पवई झील में 18 MLD सीवेज प्रवाहित होता है, जिसमें से 8 MLD का प्रवाह बंद पड़े पवई पंपिंग स्टेशन की जगह पर प्रस्तावित STP में भेजा जाएगा और शुद्ध करने के बाद झील में वापस डाला जाएगा।
बाकी 8 MLD सीवेज को आदि शंकराचार्य मार्ग स्थित मौजूदा मलजल वाहिनी द्वारा भांडुप स्थित ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाया जाएगा, जबकि शेष 2 MLD सीवेज को पेरू बाग स्थित पंपिंग स्टेशन से मिठी नदी के पास स्थित 9 MLD क्षमता वाले ट्रीटमेंट प्लांट की ओर मोड़ा जाएगा। इससे पवई झील में गंदे पानी का प्रवाह रुक सकेगा। इन परियोजनाओं की निविदा प्रक्रिया अंतिम चरण में है, और संबंधित आदेश अगले सप्ताह तक जारी होने की संभावना है।